किसी बड़ी बहस को छेड़ने की जिद नही मेरी बस पिछले इतवार से परेशान हूँ.... एक छोटी बच्ची के साहस-सूझ और उत्तरोतर पतित हो रहे समाज के निमित जनित नकारात्मक भावना के प्रति स्वयं को किंकर्तव्यविमूढ़ पा कर....
यदि आप मे सहास हो तो पढ़े और पढ़ कर ही लाईक या कमेन्ट करें....
विगत इतवार पटना मे दिल्ली गैंग रेप के संदर्भ मे आयोजित एक विचार-गोष्ठी मे सिरकत करने मै आपने चाचा जी के साथ पहुची थी.अनेकानेक चर्चाओं के मध्य विभिन्न भ्रांतियों की बात निर्मूल है क्यूंकि उनका जिक्र मैंने अपने पिछले पोस्ट मे कर दिया था, अतः मुद्दे की बात करते है...
सभा समाप्ति के पश्चात हम बस निकलने ही वाले थे कि तकरीबन १८-१९ साल की एक लड़की, जिसने अपना परिचय रंजना(गोपनीयता के निमित पर परिवर्तित नाम) बी.ए. वुमन्स कालेज दिया, ने मुझसे कुछ देर बात करने की स्वीकृती माँगी, चुकी सभा-स्थल तकरीबन खाली हो चूका था सो मैंने कहा कोई नही तुम मेरी गाड़ी मे आओ हम पास की सी.सी.डी(गाँधी मैदान) मे बैठ लेंगें....
जल्द ही हम गंतव्य पर थे मैंने कॉफी आर्डर कर पूछा हाँ अब बताओ....
तो उसने पूछा दीदी सुना है आप किसी स्वयं सेवी संस्था से जुड़ी हो...
मेरे हाँ कहने पर उसने पराडाईज़ की तफ्तीश ली...
और तब कहना शुरु किया,
"दीदी मै सोचती हूँ कि ईश्वर हमें जो संसाधन देता है उसका पूरा इस्तमाल किया जाए ताकि वो जाया ना जाए..."
मैंने कहा ये कोई नवीन कथा नही ऐसा तो होना ही चाहिए पर इस एक बात का यहाँ क्या निहितार्थ...???
उसने कहाँ,
"दीदी मै सोचती हूँ कि अपने वर्जिनिटी(कौमार्य) का सौदा करूँ और चुकी मेरी अपनी कोई आवश्यकत नही अतः रूपए का इस्तमाल किसी निस्वार्थ व्यक्ति के माध्यम से सामाजिक सहायता के लिए हो...."
मै दंग थी, गुस्से से उफनते हुए डपट लगाया, "क्या बकवास करती हो, होश मे हो.... सहायता के अनेक रास्ते है... ये ओछी हरकत होगी... एक पब्लिसिटी स्टंट ओनली...तुमने नैतिकता को ताक पर रख बकवास के निमित मुझे रोका है...???"
तब उसने कहा,
"क्षमा कीजिए दीदी मै तो आपसे सुझाव मांग रही थी... मेरा उद्देश्य कोई पब्लिसिटी स्टंट नही... पर हाँ डरी-सहमी जरूर हूँ... आप जिस आस्मिता की बात कह रही है वो तो आए दिन रौंदी जाती है कभी सडको पर, कभी गलियों मे या कि कभी घरों मे ही..., और फिर एक दिन तो इसे समाप्त होना ही है... विगत घटनाचक्रों ने मुझे बेहद निरास किया है... फिर मैंने ना जाने हजारों नकारात्मक ख्यालातों को अपने मन मे निमंत्रण दिया और तब जा कर मुझे लगा कि कम-से-कम इस तरह तो मै स्वयं को किसी लायक बना पाउंगी... फिर क्या पता कब कौन वहशी कहाँ मुझे निस्तेज कर दे....???"
मै अवाक थी, कहने को कुछ ना था.... हाँ कि उसके विचार को सराह भी नही पा रही थी और उसके विचारों के सामने नत-मस्तक भी थी...
एक बारगी लगा कि देश की बागडोर किसी कैंडिल मार्च करने वाले की जगह ऐसे युवा को क्यूँ कर ना दी जानी चाहिए... मै उस बच्ची मे अभी से एक समर्पित व्यक्तित्व की कल्पना कर रही हूँ... संभव हुआ तो पोषित भी करूंगी क्यूंकि उसमे क्षमता है जरूरत है विस्तार भर की....